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Tuesday, September 25, 2018

The-Laal

द-लाल
लेखक: विपिन तिवारी

कुछ दिनों पहले विपिन तिवारी जी का उपन्यास द-लाल पढ़ा.. उपन्यास मुझे खूब खूब पसंद आया.. उपन्यास काफी मेहनत से लिखा गया है इसमें कोई शक नहीं.

कहानी कुछ यूँ हैं कि शहर के मशहूर सेठ की मौत होती है और एक इंस्पेक्टर को इसकी जांच करनी होती है.. सेठ जी की मृत्यु को पहले आत्महत्या समझा जाता है और फिर हत्या, तहकीकात में कई किरदार सामने आते हैं जो यह काम कर सकते थे पर कैसे किया यह भी एक गुत्थी है..

कहानी तेज रफ़्तार है और शुरू से अंत तक बांधे रखती है. लेखक ने पुरे उपन्यास में सस्पेंस बरक़रार रखा है और जब अंत में रहस्य खुलता है तो मैं थोडा आश्चर्यचकित रह गया, इसलिए नहीं कि लेखक ने ऐसा अंत क्यूँ किया बल्कि इसलिए कि लेखक ने ऐसा लिखने की हिम्मत दिखाई और आज कल के बदलते ज़माने की सच्चाई को दिखाया. जमाना बदल रहा है और इस दुनिया में कुछ भी सम्भव है. मुझ इस कहानी का अंत अच्छा लगा..

कहानी तो थोडा विस्तार देकर बीच में कुछ पेज बढ़ाये जा सकते थे पर मुझे लगता है लेखक ने तेज रफ़्तार बनाये रखने के लिए कहानी को मध्य में नहीं खींचा.

किताब की कीमत कुछ पाठकों को ज्यादा लग सकती है, मुझे भी लगी थी, पर लेखक ने अपनी लेखनी से इस कीमत को वसूल करवाया है और प्रकाशक ने कम से कम इतनी कीमत के बाद पुस्तक के कागज़ की क्वालिटी बेहतर दी है, उससे कोई समझौता नहीं किया..

लेखक ने किताब के अंतिम पेज पर लिखा भी है “ये मेरा आपसे वादा है की आप इस पुस्तक को पढ़ते समय बोरियत महसूस नहीं करेंगे. मुझे पता है कि आपने इस पुस्तक को पढने के लिए जो रूपए खर्च किये हैं वो आपके खून पसीने की कमाई है.” मुझे लगता है कि लेखक ने अपना वादा पूरा किया है.

लेखक की पहली पुस्तक है तो मेरे कुछ सुझाव भी हैं:
पहला सुझाव यह है कि पुस्तक का प्रमोशन कुछ और बेहतर हो, 4-5 पोस्ट डालने से इतना ज्यादा नहीं हो पता और कि जरुरत होती है..
किताब का कवर और बेहतर हो सकता था.
पुस्तक में एक वाकिया है कि इंस्पेक्टर एक घर में अपनी इन्वेस्टीगेशन के लिए जाता है तो कुछ माहौल को हल्का और परिवार से थोड़ी आत्मीयता बढ़ाने के लिए एक गणित का सवाल पूछता है.. सवाल लिखने में गलत हो गया है हाँ अगर उसको बोला जाये तो शायद क्रम सहीं रहेगा और प्रश्न भी ठीक लगेगा. लेखक को भविष्य में गणित की जगह वर्बल रीजनिंग के सवाल पूछने चाहिए, क्योंकि ज्यादातर आम बोलचाल में वही पूछे जाते हैं.

मुझे लेखक में बहुत संभावनाएं दिख रही हैं, अगर यह अपनी लेखनी की धर को चमकते रहे तो जरुर तरक्की करेंगे..

Saturday, September 15, 2018

आत्म संवाद


कभी तो होगी इस रात की सुबह प्रिय,
कभी तो छटेंगा अंधेरा इस कालिमा का!

भोर का उजियारा होने से कुछ पहले,
दुनिया जागने और तुम सोने जाते हो शोभित!

उठो जागो, बिस्तर छोड़, करो कुछ श्रम,
बहाने बनाने में ही जिन्दगी निकल जायेगी!

फिर होगी भी अगर सुबह, छटें चाहे अंधेरा,
तो भी तुम्हारे किसी काम नहीं आयेगा!

हाथ में होगा गन्ना, पर दांत न होंगे,
हसेंगी दुनिया पर साथ न होगी!

सोचोगे बीते समय को और रोते रहोगे,
दिन रात तब भी यूँ ही होते रहेंगे!

यही है समय कुछ कर दिखाने का,
दुनिया में कुछ नाम कमाने का!

ऐसे ही होगी इस रात की सुबह प्रिय,
ऐसे ही छटेंगा अंधेरा इस कालिमा का!

मेहनत तुम्हारी रंग  जरूर लाएगी
उलझने जिन्दगी की सारी सुलझ जाएंगी

शोभित

Thursday, September 13, 2018

Giveaway

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Giveaway ends Sept 14, 2018, at 11:59 pm.


Friday, July 06, 2018

विद आउट मैन


विद आउट मैन (कहानी संग्रह)
लेखिका: गीता पंडित

मैं ज्यादातर समय से पढ़ नहीं पा रहा था.. इस किताब के शीर्षक ने मुझे थोडा आकर्षित किया तो पढने से खुद को रोक नहीं पाया और अपनी बहुत ज्यादा व्यस्त दिनचर्या से भी वक़्त निकल के पढ़ ही डाला..

इस किताब में कुल 8 कहानियां हैं, और हर एक कहानी किसी न किसी महिला के जीवन की घटना (काल्पनिक) है..

1.       विद आउट मैन: इस कहानी में एक ऐसी महिला कि कहानी है जो बिना शादी किये, जीवन जीना चाहती है और माँ भी बनना चाहती है.. लेखिका ने इसे काफी मनोयोग से लिखा है.. और कहानी सीधे दिल पर असर करती है..
2.       फेसबुकिया मॉम: इस कहानी में महिलाओं पर अत्याचार और फेसबुक का मिश्रण पेश करने की कोशिश की गयी है, मुझे लगता है कि लेखिका को फेसबुक का शायद बहुत ज्यादा अनुभव नहीं हैं, शायद इस कारण से कहानी में कुछ झोल पैदा हो गया है और कहानी वो असर नहीं छोड़ पाती..
3.       मसीहा: एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो दूसरी बेसहारा महिलाओं के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए काम कर रही है और पूरा जीवन ऐसे ही बिताने के इच्छा रखती है..
4.       आदम और ईव: कहानी एक कटाक्ष हैं समाज में उपस्थित अंधविश्वासों पर जहाँ कुछ भी गलत होने पर किसी न किसी पर ठीकरा फोड़ दिया जाता है, कहानी के अंत में लेखिका ने बहुत गुस्सा कागजों पर उकेरा है और वो बिलकुल उपयुक्त भी लगता है..
5.       एक और दीपा: यह कहानी एक प्रेम कहानी है पर मुझे कुछ अधूरी सी लगी है, नायक नायिका में प्यार होता है और नायिका इस कशमकश में है कि नायक उसे अपनाएगा या नहीं. कहानी में जो twist है वो बाद में गीला पटाखा साबित होता है.. अगर कहूँ कि यह कहानी कुछ misfit है इस संकलन में, तो कुछ गलत नहीं होगा..
6.       अजनबी गंध: यह कहानी भी एक कटाक्ष ही है उस समाज पर जहाँ बिना सोचे समझे जादू टोने किये जाते हैं, बिना उनकी जरुरत को समझे. बिना यह समझे कि यह कितना दर्दनाक हो सकता है..
7.       मुड़ी-तुड़ी कागज की पर्ची: अक्सर हमें बच्चों पर होने वाले यौन उत्पीडन की ख़बर मिलती है, कहानी में ऐसी ही एक लड़की की कहानी है जो ऐसे जाल में फंसते फंसते रह गयी.. कहानी हमें यह भी समझती है कि बच्चों को असली खतरा कहाँ से होता है.. कहाँ पर ज्यादा ध्यान देने की जरुरत है..
8.       ऐसे नहीं: कहानी एक ऐसी स्त्री की है जिसके पति ने कभी अपने घरवालों को अपनी शादी के बारे में नहीं बताया है और उसकी अचानक से असमय म्रत्यु हो जाती है.. अब वो स्त्री क्या करे आगे.. कहाँ जाय.. कहानी की शुरुआत सही है पर अंत में अचानक से ख़त्म कर दी गयी लगती है..

पूरी किताब को अगर देखा जाए तो एक दो कहानियों को छोड़कर, बाकि सभी कहानियां असरदार है और अपना प्रभाव छोडती हैं. कुछ कहानिया अगर थोड़ी सी और लम्बी (बस 1-2 पेज और) होती तो शायद और ज्यादा बेहतर हो सकती थी.. कहानियों में अलग अलग काल्पनिक महिलाओं को दिखाया गया है और कहानियों के विषय में विविधता है. उम्मीद है कि भविष्य में लेखिका से और अच्छी कहानियां पढने को मिलेंगी..

रेटिंग: 3 out of 5



The First Sip of My Morning Coffee



The First Sip of My Morning Coffee
By Nikita Tak

‘The First Sip of My Morning Coffee’ written by ‘Nikita Tak’ is a good first attempt from a new writer. It is like a well made khichdi of 3 things- short Poetries, Quotes on various topics and a short Story. Language used is very simple yet very effective; you feel a direct communication with the writer.

Poems in this book are on various subjects and moods. Every poem is there making its mark and leaving you with emotions. A form of poetry, Acrostic, is being used a lot in this book and it was my first time coming across this form of poetry. One thing did not make sense to me is the use of the word, Doctor & Engineer very often.

Quotes are very much to-the-point and make you think about subject and ponder upon. Quotes are on various topics and language is very simple to understand. It shows you the viewpoint of writer on various areas of life.

There is a short story at the end of book which is also very interesting. It shows the state of society in present time. It also gave me an idea about how I can help society.

Overall it is a very good effort from the author who is new in town. This book is recommended to all those who prefer light reading.

I have only one complaint and that is about the price of book. At Rs 199, book seems costlier. It is suicidal for any new author who has to make it market with over-priced book.


Rating: 3 out of 5


Monday, June 18, 2018

T & C (Soch ki Soch) by Shubham Savita Balasaheb


T & C (Soch ki Soch)
by Shubham Savita Balasaheb

This book falls under self-help or motivational category. Emoji or Emoticons have been used very frequently in this book at various places.

First, let me tell you about Emoticons, these have made it a light read book but I am not able to find any other usefulness of this usage in the text but it looks like a good idea to me and should be explored well in future.

Now let’s discuss about the book. In Shubham’s words:
“I don’t know whether this book will be flop/hit/super hit/blockbuster but, through this book I’m trying to change the thinking of people because, we have to move one step ahead in all formats than other countries every new year which will make INDIA an DEVELOPED country and let’s start this by CHANGING OUR THINKING”

In my view:
One can’t get disagree with points mentioned in the book; whatever is covered in this book is generally acceptable. It is like all moral things we have learnt since school or via whatsapp are there, if we really apply them, our India will change but is it that easy!

Shubham has compiled moral texts received on social channels like Whatsapp, Facebook etc in his own style and add his vision to it to make it in a book form.

But I feel he should have put a bit more efforts to make book texts his own, he could have justified his stands more clearly or added few examples etc

There are few spelling mistakes also in text but when one read in flow, won’t face issue. For example ‘MOTVATION’ is heading of a chapter.

Rating: 2 out of 5

Best of luck for future work!

Monday, June 11, 2018

कौवों का हमला - अजय सिंह ‘रावण’


कौवों का हमला
लेखक: अजय सिंह ‘रावण’

मैं बाल साहित्य को छोटी छोटी कहानियों के रूप में पढना ज्यादा पसंद करता हूँ, बाल ‘उपन्यासों’ ने मुझे बचपन से अभी तक कभी प्रभावित नहीं किया, पता नहीं क्यों बोरिंग लगा करती थी, हालाँकि इस किताब को पढने के बाद मेरा विचार बदल गया है.. अभी जब इस किताब को ख़रीदा तो कारण केवल यह था कि यह लेखक की पहली किताब थी और मैं बस प्रोत्साहित करना चाहता था. मुझे किताब ख़रीदने के बाद ही पता चला था कि लेख़क पहले से ही लेखन कार्य में हैं और काफी अनुभव रखते हैं.

बाल साहित्य को एक बच्चा बनकर पढने में ही ज्यादा मज़ा आता है. जब इस बुक को ख़रीदा था तो यही सोच कर खरीदा था कि कुछ हल्का फुल्का मनोरंजन हो जायेगा. किताब पढ़ते समय मैं अपने आपको करीब 20 साल पीछे ले गया और पढना शुरू किया. शुरुआत (लगभग 10-15%) में थोड़ी समस्या आई, पात्रों से और नॉवेल की गति से सामंजस्य बैठाने में, नॉवेल को एक बार छोड़ना भी पड़ा, पर जब एक बार सेटिंग बैठ गई तो बाकि 85% उपन्यास एक सिटिंग में ही पूरा किया.

उपन्यास के पात्र अपने आस पास के ही लगते हैं, एक हायर मिडिल क्लास परिवार जैसे पर हाँ, हर घर में शायद इतने गैजेट्स न मिल पायें, पर ये सब कहानी के लिए जरुरी था. खुद मेरे अपने बचपन में मुझे गैजेट्स इकठ्ठा करने का शौक था. बच्चे कैसे सोचते हैं, कैसा व्यव्हार करते हैं उनके पापा मम्मी से सम्बन्ध कैसे होते हैं, काफी वास्तविक सा बन पढ़ा है इस उपन्यास में..

एक पाठक साहब का उपन्यास है जिसमे पूरी कहानी की शुरुआत एक गाय के रंभाने से शुरू होती है और उसके पीछे का कारण जानकार बहुत आश्चर्य होता है, कुछ उसी तरह इस उपन्यास में उपन्यास का प्रमुख पात्र कौवों का एक झुण्ड देखता है और हैरान होता है कि वो कांव! कांव!! क्यों नहीं कर रहे और बस कहानी आगे बढती है और पाठकों को बाँध के रखती है.

उपन्यास में लेखक का पूर्व अनुभव खूब दिखाई देता है और उपन्यास पर पूरी तरह उनकी पकड़ रही है. उपन्यास बहुत शानदार बन पढ़ा है और मैं इसे अपने रिश्तेदारों में पढने के लिए देना चाहता हूँ.. मुझे लगता है इन गर्मी की छुट्टियों में यह उनका भरपूर मनोरंजन करेगा.

उपन्यास एक बाल उपन्यास तो है पर लगभग 8वीं क्लास से ऊपर के बच्चों के लिए ज्यादा मज़ेदार होना चाहिए (ऐसा मुझे लगता है).

सुधार के खाते में:
उपन्यास के शुरुआत में उन्नत के परिवार को थोड़े से ज्यादा (5-6) पेज दिए जाने चाहिए थे, मेन प्लाट शुरू करने से पहले, इससे बच्चे कहानी से ज्यादा जुडाव महसूस करेंगे.

भविष्य के उपन्यासों के लिए शुभकामनायें..


रेटिंग: 4

शोभित गुप्ता