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Saturday, September 15, 2018

आत्म संवाद


कभी तो होगी इस रात की सुबह प्रिय,
कभी तो छटेंगा अंधेरा इस कालिमा का!

भोर का उजियारा होने से कुछ पहले,
दुनिया जागने और तुम सोने जाते हो शोभित!

उठो जागो, बिस्तर छोड़, करो कुछ श्रम,
बहाने बनाने में ही जिन्दगी निकल जायेगी!

फिर होगी भी अगर सुबह, छटें चाहे अंधेरा,
तो भी तुम्हारे किसी काम नहीं आयेगा!

हाथ में होगा गन्ना, पर दांत न होंगे,
हसेंगी दुनिया पर साथ न होगी!

सोचोगे बीते समय को और रोते रहोगे,
दिन रात तब भी यूँ ही होते रहेंगे!

यही है समय कुछ कर दिखाने का,
दुनिया में कुछ नाम कमाने का!

ऐसे ही होगी इस रात की सुबह प्रिय,
ऐसे ही छटेंगा अंधेरा इस कालिमा का!

मेहनत तुम्हारी रंग  जरूर लाएगी
उलझने जिन्दगी की सारी सुलझ जाएंगी

शोभित

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