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Monday, June 18, 2018

T & C (Soch ki Soch) by Shubham Savita Balasaheb


T & C (Soch ki Soch)
by Shubham Savita Balasaheb

This book falls under self-help or motivational category. Emoji or Emoticons have been used very frequently in this book at various places.

First, let me tell you about Emoticons, these have made it a light read book but I am not able to find any other usefulness of this usage in the text but it looks like a good idea to me and should be explored well in future.

Now let’s discuss about the book. In Shubham’s words:
“I don’t know whether this book will be flop/hit/super hit/blockbuster but, through this book I’m trying to change the thinking of people because, we have to move one step ahead in all formats than other countries every new year which will make INDIA an DEVELOPED country and let’s start this by CHANGING OUR THINKING”

In my view:
One can’t get disagree with points mentioned in the book; whatever is covered in this book is generally acceptable. It is like all moral things we have learnt since school or via whatsapp are there, if we really apply them, our India will change but is it that easy!

Shubham has compiled moral texts received on social channels like Whatsapp, Facebook etc in his own style and add his vision to it to make it in a book form.

But I feel he should have put a bit more efforts to make book texts his own, he could have justified his stands more clearly or added few examples etc

There are few spelling mistakes also in text but when one read in flow, won’t face issue. For example ‘MOTVATION’ is heading of a chapter.

Rating: 2 out of 5

Best of luck for future work!

Monday, June 11, 2018

कौवों का हमला - अजय सिंह ‘रावण’


कौवों का हमला
लेखक: अजय सिंह ‘रावण’

मैं बाल साहित्य को छोटी छोटी कहानियों के रूप में पढना ज्यादा पसंद करता हूँ, बाल ‘उपन्यासों’ ने मुझे बचपन से अभी तक कभी प्रभावित नहीं किया, पता नहीं क्यों बोरिंग लगा करती थी, हालाँकि इस किताब को पढने के बाद मेरा विचार बदल गया है.. अभी जब इस किताब को ख़रीदा तो कारण केवल यह था कि यह लेखक की पहली किताब थी और मैं बस प्रोत्साहित करना चाहता था. मुझे किताब ख़रीदने के बाद ही पता चला था कि लेख़क पहले से ही लेखन कार्य में हैं और काफी अनुभव रखते हैं.

बाल साहित्य को एक बच्चा बनकर पढने में ही ज्यादा मज़ा आता है. जब इस बुक को ख़रीदा था तो यही सोच कर खरीदा था कि कुछ हल्का फुल्का मनोरंजन हो जायेगा. किताब पढ़ते समय मैं अपने आपको करीब 20 साल पीछे ले गया और पढना शुरू किया. शुरुआत (लगभग 10-15%) में थोड़ी समस्या आई, पात्रों से और नॉवेल की गति से सामंजस्य बैठाने में, नॉवेल को एक बार छोड़ना भी पड़ा, पर जब एक बार सेटिंग बैठ गई तो बाकि 85% उपन्यास एक सिटिंग में ही पूरा किया.

उपन्यास के पात्र अपने आस पास के ही लगते हैं, एक हायर मिडिल क्लास परिवार जैसे पर हाँ, हर घर में शायद इतने गैजेट्स न मिल पायें, पर ये सब कहानी के लिए जरुरी था. खुद मेरे अपने बचपन में मुझे गैजेट्स इकठ्ठा करने का शौक था. बच्चे कैसे सोचते हैं, कैसा व्यव्हार करते हैं उनके पापा मम्मी से सम्बन्ध कैसे होते हैं, काफी वास्तविक सा बन पढ़ा है इस उपन्यास में..

एक पाठक साहब का उपन्यास है जिसमे पूरी कहानी की शुरुआत एक गाय के रंभाने से शुरू होती है और उसके पीछे का कारण जानकार बहुत आश्चर्य होता है, कुछ उसी तरह इस उपन्यास में उपन्यास का प्रमुख पात्र कौवों का एक झुण्ड देखता है और हैरान होता है कि वो कांव! कांव!! क्यों नहीं कर रहे और बस कहानी आगे बढती है और पाठकों को बाँध के रखती है.

उपन्यास में लेखक का पूर्व अनुभव खूब दिखाई देता है और उपन्यास पर पूरी तरह उनकी पकड़ रही है. उपन्यास बहुत शानदार बन पढ़ा है और मैं इसे अपने रिश्तेदारों में पढने के लिए देना चाहता हूँ.. मुझे लगता है इन गर्मी की छुट्टियों में यह उनका भरपूर मनोरंजन करेगा.

उपन्यास एक बाल उपन्यास तो है पर लगभग 8वीं क्लास से ऊपर के बच्चों के लिए ज्यादा मज़ेदार होना चाहिए (ऐसा मुझे लगता है).

सुधार के खाते में:
उपन्यास के शुरुआत में उन्नत के परिवार को थोड़े से ज्यादा (5-6) पेज दिए जाने चाहिए थे, मेन प्लाट शुरू करने से पहले, इससे बच्चे कहानी से ज्यादा जुडाव महसूस करेंगे.

भविष्य के उपन्यासों के लिए शुभकामनायें..


रेटिंग: 4

शोभित गुप्ता