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Saturday, July 15, 2017

ट्रेजेडी गर्ल
लेखक: ऍम इकराम फरीदी

लेखक का यह दूसरा उपन्यास है. उपन्यास मुझे पसंद आया. लेखक ने मानवीय भावनाओं से भरपूर एक थ्रिलर लिखा है और एक सफल उपन्यास में जो मसाले होने चाहिए वो सभी डाले हैं. लेखक अभी इस फील्ड में कदरन नए हैं, उस हिसाब से काफ़ी अच्छा उपन्यास लिखा है और भविष्य में काफी अच्छा लिखने कि उम्मीद भी जगाई है. जिन लोगों ने अभी थ्रिलर उपन्यास पढने शुरू ही किये हैं उनको इसमें काफी मज़ा आएगा. नॉवेल में कई किरदार काफ़ी मज़ाकिया लहज़े में डायलाग बोल रहे हैं जो कि यक़ीनन बोरियत से बचाता है. नॉवेल तेज रफ़्तार है और अब्बास मस्तान की फिल्मों की तरह इसमें कई मोड़ आते हैं और किरदार अपने रंग भी बदलते हैं.

मैं उनको कुछ सुझाव भी देना चाहूँगा. हालाँकि कोई भी सुझावों से गुस्सा हो सकता है, असहमत भी हो सकता है. पर मुझे लगता है कि हर किसी को स्वयं को सर्वश्रेष्ठ मानकर न बैठकर, निरंतर सुधर कि कोशिश करनी चाहिए.

एक सुझाव नॉवेल कि भाषा के लिए है जो कि वैसे तो काफी सही है पर बीच बीच में अचानक से कुछ इतने भारी भरकम शब्द आ जाते हैं कि जिनका मतलब हर किसी को पता ही नहीं होगा जैसे एक शब्द है हस्बेमामूल. ऐसे कई शब्द हैं जो नॉवेल में कुछ जगह प्रयोग हुए हैं. मेरा सुझाव है कि या तो ऐसे शब्द प्रयोग ही न करें और अगर करें तो उनका मतलब भी बताएं.

दूसरा नॉवेल के चरित्र चित्रण को लेकर है. फरीदी जी इस मामले में थोडा कमजोर पड़े हैं, पर शायद ये अनुभव की कमी के कारण है.

(Spoiler Alert: कृपया आगे न पढ़े, अगर आपने अभी नॉवेल नहीं पढ़ा तो, वर्ना आपका मज़ा ख़राब हो सकता है)

एक तो नॉवेल की प्रमुख नायिका के बारे में है. ज्यादातर नॉवेल में नायिका को शुरू से आखिर तक हालात कि सतायी हुई दिखाया गया है, पर नॉवेल के एक प्रसंग ने, जिसमे वो एक कॉल सेंटर में फ़ोन करती है, जिस तरीके से अपने हमदर्द को लालची वगैरह बताया, उससे उसका चरित्र उतना मजबूत नहीं रहता, जितना रहना चाहिए था. हाँ अगर नायिका को मतलबी दिखाना था तो शुरू से इस प्रकार से ही लेकर चलना था. इस प्रसंग में अगर ये बातें नायिका कि जगह कॉल सेंटर वालो ने वोली होती तो ज्यादा प्रभाव पड़ता.

दूसरा नॉवेल का प्रमुख विलेन इतना उभरकर सामने आ ही नहीं पता अपनी मज़ाकिया भाषा के कारण, क्योंकि जहाँ उसको भड़कना चाहिए वहां वो हलकी फुलकी भाषा में अपने आप से बोलता दिखाया जाता है.

एक सुझाव नॉवेल कि मार्केटिंग के लिए है, अभी उपन्यास हमारे पास पहुंचा ही है, हमें पता है पहला एडिशन है पर नॉवेल के अंतिम पेज पर इस नॉवेल को पहले ही काफी सफल बता दिया गया है! जनाब अब इतना नहीं चलता.

दूसरा नॉवेल कि प्रिंट क्वालिटी के बारे में है जो कि शानदार नहीं कही जा सकती है. यहाँ पर एक हादसा शायद हमारी प्रति में ही हुआ कि कई पेज का एक पूरा सेट ही आगे पीछे हो गया जिससे पढने में दिक्कत हुई.

हालाँकि उपरोक्त अंतिम दोनों सुझाब प्रकाशक के लिए ज्यादा हैं लेखक के लिए कम.

अभी लेखक मार्केट में उभर ही रहे हैं और मैं आशा करता हूँ कि नॉवेल दर नॉवेल आपने में सुधार लायेंगे. मुझे विश्वास है कि उपन्यास विधा को एक नए आयाम तक पहुंचाएंगे.


आमीन!